किरचॉफ का प्रथम नियम (Kirchhoff's current law)
किसी विद्युत परिपथ की प्रत्येक संधि पर मिलने वाली समस्त विद्युत धाराओं का बीजगणितीय योग शून्य होता है।अतः गणितीय भाषा में -
Σ I = 0
संधि की ओर जाने वाली धाराओं को धनात्मक तथा संधि से दूर जाने वाली धाराओं को ऋणात्मक माना जाता है।
किरचॉफ का प्रथम नियम (Kirchhoff's law- current law)
चित्र में प्रदर्शित है कि- किसी विद्युत परिपथ में संधि O प्रदर्शित किया गया है, जिसमें धारा I1 तथा I4 संधि की ओर आ रही हैं, इसलिए इन्हें धनात्मक तथा I2 , I3 तथा I5 संधि से दूर जा रही हैं। इसलिए इन्हें ऋणात्मक प्रदर्शित किया गया है।
किरचॉफ के नियम के अनुसार- संधि पर मिलने वाली समस्त धाराओं का बीजगणितीय योग शून्य होना चाहिए।
अर्थात् - I1 + I2 - I3 - I4 - I5 = 0
I1 + I2 = I3 + I4 + I5 = 0
उक्त समीकरण यह प्रदर्शित करता है कि- जब किसी परिपथ में स्थाई धारा प्रवाहित की जाती है तो परिपथ में किसी भी संधि पर ना तो आवेश संचित होता है और ना ही वहां से आवेश हटता है।
अर्थात किरचॉफ के इस नियम को आवेश संरक्षण का नियम इसीलिए कहा जाता है। किरचॉफ के प्रथम नियम को किरचॉफ का धारा नियम Kirchhoff's current law भी कहा जाता है।
किरचॉफ का द्वितीय नियम - (Kirchhoff's voltage law)
किसी बंद विद्युत परिपथ से विभिन्न खंडों में बहने वाली धाराओं तथा संगत प्रतिरोधों के गुणनफल तथा उस परिपथ में लगाए गए विभिन्न विद्युत वाहक वालों का बीजगणितीय योग शून्य होता है।
गणितीय भाषा में-
Σ IR + Σ E = 0
किरचॉफ के द्वितीय नियम के अनुसार जब धारा की दिशा में चलते हैं तो धारा तथा उसके संगत प्रतिरोधों के गुणनफल को धनात्मक लेते हैं लेकिन जब धारा के विपरीत दिशा में चलते हैं तब धारा तथा उसके संगत प्रतिरोध के गुणनफल को ऋणात्मक लेते हैं।
किरचॉफ का द्वितीय नियम वास्तव में ऊर्जा संरक्षण नियम कहलाता है ,इस नियम के अनुसार आवेश के पूर्ण बंद परिपथ में चलने पर इसकी ऊर्जा में कोई परिवर्तन नहीं होता है। इस नियम को किरचॉफ का वोल्टेज नियम Kirchhoff's voltage law भी कहते हैं।
चित्र में एक विद्युत परिपथ प्रदर्शित है, जिसमें वह प्रतिरोध R में विद्युत वाहक बल क्रमशः E1व E2 से वाले सेलों को समांतर क्रम में जोड़कर धारा प्रवाहित की जा रही है। इन सेल का आंतरिक R1 व R2 प्रतिरोध है।
माना इन सेलों से ली गई धारा क्रमशः I1व I2 है। यदि बाहरी प्रतिरोध R से प्रवाहित धारा I3 है, तो संधि D पर किरचॉफ के प्रथम नियम के अनुसार-
I3 = I1 + I2
लेकिन किरचॉफ के द्वितीय नियम के अनुसार परिपथ ADCBA में -
I1R1 - I2R2 - E1 + E2 = 0 ….(1)
और परिपथ CDEFC में -
I2R2 + (I1 + I2)R - E2 = 0 ….(2)
समी. (1) तथा समी. (2) को हल करके I1 तथा I2 का मान ज्ञात किया जा सकता है।
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