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जानें कैसे तैयार करें - पाठ योजना: अर्थ, सिद्धान्त, विशेषताएं, आवश्यकता, महत्त्व, आयाम, लाभ

पाठ-योजना का अर्थ (Meaning of lesson planning)

पाठ-योजना (lesson Plan)- पाठ-योजना दो शब्दों 'पाठ' तथा "योजना' के मेल से बना है जिसका अर्थ है को योजनाबद्ध रूप से तैयार करना। पाठ-योजना मुख्यत: ऐसी योजना होती है, शिक्षक ने यह तय करना होता है, कि कौन सा विषय कैसे व किस तरह से पढ़ाया तथा उसके लिए.आवश्यक सामग्री किस प्रकार से संगठित की जाए, शिक्षण में पाठ्य योजना को भी महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है। पाठ-योजना lesson Plan का अर्थ शिक्षक के द्वारा बनाई जाने वाली वह योजना है जिसके आधार प शिक्षक छात्रों को विषय से भली-भांति परिचित कराता है।

पाठ-योजना की परिभाषाएं (Definitions of Lesson Plan)





पाठ-योजना को विभिन्न विद्वानों ने अपने-अपने ढंग से परिभाषित किया है। इ विद्वानों द्वारा दी गई परिभाषाएँ निम्नलिखित हैं-

विले के अनुसार ''पाठ-योजना उद्देश्यों का निर्धारण, विषय-वस्तु का चयन व उसफा संयोजन तथा प्रस्तुतीकरण की विधि का प्रयोग व क्रियान्वयन को निश्चित कला है।

" According to Wile ("The daily lesson plan is defining the objec- tives, selecting
the subject matter and ordering it and to determine the use of presentation method and process."

एल० बी० सैंडस के शब्दों में, ''पाठ-योजना वास्तव मे क्रिया-योजना है। इसमें शिक्षक का कार्य दर्शन, उसका दर्शन ज्ञान, अपने विद्यार्थियों के बारे में उसकी समझ, व्यापक शैक्षिक उद्देश्यों का ज्ञान, पढ़ाई जाने वाली विषय सामग्री का ज्ञान और प्रभावशाली विधियों के प्रयोग संबंधी उसकी योग्यता है।''

''plan is actually a plan of action. It includes the working philosophy. the teacher, his knowledge of philosophy, his information about under''

एन० एल० बोजिंग (L. bosing) इस संबंध में कहते हैं, '' पाठ-योजना का अर्थ ऐसे निश्चित साधनों की व्याख्या से है जिसके द्वारा निश्चित समय में उद्देश्यों की प्राप्ति की जाती है।''

“The meaning of lesson plan is the description of specific means for achieving the objectives in a definite time.''

उपरोक्त परिभाषाओं के आधार पर कहा जा सकता है कि :
  • पाठ-योजना पूर्व-नियोजित योजना है।
  • शिक्षण के स्तरों को क्रमबद्ध करना है।
  • कक्षा में उचित शिक्षण वातावरण बनाना। .
  • शिक्षा उद्देश्यों को प्रभावशाली ढंग के साथ प्राप्त करने का साधन है। -
  • यह वह योजना है कि शिक्षक ने कक्षा में क्या पढ़ाना है।

पाठ योजना की विशेषताएँ (Characteristics of a Good Lesson Planning)

  • पाठ योजना से शिक्षण प्रक्रिया रोचक एवं प्रभावशाली तभी बन सकती है जब सोच-समझकर, ठीक ढंग से बनाई गई हो
  • पाठ योजना बालकों के जीवन से संबंधित होनी चाहिए। पाठ योजना लिखित रूप से तैयार करनी चाहिए. क्योंकि लिखित रूप से होने पर उसको दूर किया जा सकता;
  • कक्षा में सिखाए, गए ज्ञान का प्रयोग छात्र कैसे करेंगे, इस बात का भी होना चाहिए। पाठ योजना कितने समय में पूरी होगी, यह भी स्पष्ट होना चाहिए
  • पाठ योजना में पाठ्य पुस्तक के तथ्यों को तार्किक क्रम में व्यवस्थित कर चाहिए।
  • किस स्थल पर अध्यापक क्रियाएँ व छात्र क्रियाएं क्या होंगी यह स्पष्ट होन चाहिए। 
  • पाठ योजना में प्रत्येक पद का स्पष्टीकरण होना चाहिए। .
  • पाठ योजना में यह स्पष्ट होना चाहिए कि पाठ्य वस्तु के किस तथ्य के लिए किस शिक्षण विधि का प्रयोग होगा तथा किस स्थल पर किस शिक्षण साधन की सहायत से विषय वस्तु को स्पष्ट किया जाएगा। श लिली
  • पाठ योजना बच्चों के पूर्व ज्ञान पर आधारित होनी चाहिए।

पाठ-योजना की आवश्यकता एवं महत्त्व (Need and Importance of Lesson Plan)

  • छात्रों की व्यक्तिगत भिन्नता का आधार पर कक्षा की क्रियाओं की व्यवस्था इले मं पाठ योजना सहायक होती है।
  • इसमें शिक्षण उद्देश्यों तथा परीक्षण परिस्थितियों का निर्धारण होता है।
  • इसमें शिक्षण क्रियाओं का अधिगम स्वरूपों से संबंध स्थापित किया जाता है।
  • छात्राध्यापकों की परीक्षण के लिए पाठ योजना कक्षा की क्रियाओं के लिए रुपरेखा प्रदान करता है।
  • छात्रों की क्रियाओं के नियंत्रण एवं पुनर्बलन की प्रविधियों के प्रयोग की परिस्थिति भी निर्धारित की जाती है।
  • इससे कक्षा में शिक्षण की क्रियाओं एवं सहायक सामग्री की पूर्ण जानकारी हो जाती है।
  • इससे प्रस्तुतीकरण के क्रम एवं पाठ्य-वस्तु के रूप को निश्चित कर लिया जाता है
  • सहायक सामग्री के प्रयोग के स्थल, शिक्षण विधि एवं प्रविधियों का निर्धारण हो जाता है।
  • इससे पाठ्य-वस्तु के तत्त्वों के क्रम, चिंतन एवं विकास में क्रमबद्धता स्थापित की जाती है।

पाठ-योजना के सिद्धान्त (Principles of Lesson Plan).

पाठ-योजना का निर्माण करते समय शिक्षक को निम्न दिए गए सिद्धांतों का अनुसरण करना चाहिए। इसके उपरांत ही शिक्षक सफल एवं प्रभावशाली पाठ-योजना कानिर्माण कर सकता है तथा शिक्षण के उद्देश्यों को प्राप्त कर सकता है।

1. विद्यार्थियों की सहभागिता (Student participation) - पाठ-योजना बनाते समय इस बात का विशेष ध्यान रखना चाहिए कि विद्यार्थियों की क्रियाशील हो क्योंकि शिक्षण का मुख्य केन्द्र-बिन्दु विद्यार्थी होते हैं तथा उनको ही में रख कर पाठ-योजना का निर्माण किया जाता है।

2. उपयुक्त विषय-वस्तु का चयन (Selection of Suitable Subject) - पाठ-योजना का निर्माण करते समय इस सिद्धांत का अनुसरण का अनिवार्य है कि जो विषय शिक्षकों द्वारा चुना जाता है, वह विद्यार्थियों के स्तर का हो अर्थात उपयुक्‍त विषय-वस्तु का चयन होना चाहिए। ताकि विद्यार्थी उसे आसानी हे समझ सकें।

3. संगठित प्रस्तुतीकरण (Organised Presentation)- पाठ-योजना बनाते समय शिक्षकों को इस बात का भी ध्यान रखना चाहिए कि पाठ अच्छी तरह से संगठित क्रमानुसार एवं प्रभावशाली हो, तभी निर्धारित उद्देश्यों को प्राप्ति संभव. है।

4. शिक्षण को तकनीकों का सिद्धांत (Principle of Teaching Technic) - पाठ-योजना में शिक्षक के द्वारा जिस तकनीक का प्रयोग करना होता है, उसे भी स्पष्ट रूप से वर्णित किया जाना चाहिए जैसे-वह कैसे प्रस्तुत करेगा, किस विधि | का प्रयोग किया जाएगा, कौन-सा तथा किस प्रकार के प्रश्‍न पूछे जाएंगे। इसमें शिक्षकों के द्वारा प्रयोग की जाने वाली सहायक सामग्री का भी वर्णन होना चाहिए।

5. सार-लेखन का सिद्धांत (Principles of Summarization) - पाठ- योजना में सम्पूर्ण पाठ का सार भी लिखना चाहिए। इस सार को विद्यार्थियों की सहायता से श्याम-पट पर वर्णन करना चाहिए।

6. गृहकार्य का सिद्धांत (Principle of Assignments) - पाठ-योजना मे विद्यार्थियों -को दिए जाने वाले गृहकार्य का भी उचित वर्णन किया जाना चाहिए।

7. उद्देश्यों पर आधारित (Based on aims) - पाठ-योजना बनाने के पीछे निश्चित उद्देश्य होते हैं। इसलिए जब शिक्षक पाठ-योजना की तैयारी कर रहा हो तो उसके पास पाठ से संबंधित निश्चित उद्देश्य होने चाहिए। इस सिद्धांत का महत्त्व इसलिए भी बढ़ जाता है क्योंकि सिद्धांतों का अनुसरण करते हुए उद्देश्यों की प्राप्ति की जा सकती है। इससे शिक्षण के उद्देश्यों का ज्ञान हो जाता है।

8. श्याम-पट्ट के प्रयोग का सिद्धांत (Principles of Use of Chalkboard) - पाठ-योजना में श्याम-पट्ट के प्रयोग का भी स्पष्ट वर्णन होना चाहिए। इसमें (पार्ठ योजना में) श्याम-पट्ट पर दी जाने वाली समस्त क्रियाओं का वर्णन होना चाहिए।

9. मूल्यांकन में अभ्यास का सिद्धांत (Principle of Evaluation Exercise)- पाठ्य योजना में मूल्यांकन अभ्यास का भी उपयुक्त वर्णन होना चाहिए। इसमें दोहराई मे किए जाने वाले प्रश्नों को सूची होनी चाहिए। ताकि विद्यार्थियों द्वारा प्राप्त ज्ञान किया जा सके।

10. लचीलापन (Flexibility) - जटिल पाठ-योजना विद्यार्थियों के अन्तर्गत विद्यार्थियों में ठीक ढंग से विकास नहीं होता। इसलिए पाठ-योजना बनाते समय लचकीलेपन दतक अनुसरण करना चाहिए क्योकि ऐसी योजना में ज्ञान के प्रसार करने पर निहित रहता है।

पाठ-योजना के आयामों का वर्गीकरण (Classification of Approaches of Lesson-Planning)

पाठ-योजना के आयामों का निम्नलिखित वर्गीकरण कहा जा सकता है-

1. व्यापक आयाम (Macro Approach) - व्यापक आयाम के पाठ योजनाओं में छात्रों को क्रियाओं के विकास पर अधिक बल दिया जाता है। इसमें एक बड़े समूह को 5 से 45 मिनट तक पढ़ाने के लिए पाठ-योजना तैयार की जाती है। पाठ की इकाई- पाठ की इकाई का आकार भी बड़ा होता है। परंपरागत शिक्षण अभ्यास में इसी प्रकार की पाठ योजनाओं का प्रयोग किया जाता है। इसमें अनेक शिक्षण कौशल का भी प्रयोग किया जाता है।

2.  सूक्ष्म आयाम (Micro Approach)- सूक्ष्म आयाम को पाठ योजनाओं में शिक्षक व्यवहार में सुधार तथा कौशल के विकास को महत्त्व दिया जाता है। इसका प्रयोग प्रशिक्षण में छात्राध्यापकों को शिक्षण क्षमताओं के विकास के लिया किया जाता है । पाठ योजना की इकाई छोटी होती है।एक छोटे समूह को 5 से 10 मिनट तक पढ़ाने की तैयारी की जाती है। इसे सूक्ष्म शिक्षण कहा जाता है। शिक्षक के व्यवहार में सुधार के लिए यह एक प्रभावशाली प्रविधि है। पाठ योजनाओं को लिखित एवं अलिखित रूपों में विभाजित किया जाता है

3. लिखित रूप में (In Written) - विभिन्न प्रशिक्षण संस्थाओं में साधारणतया छात्राध्यापकों को कक्षा शिक्षण के पूर्व पाठ योजना लिखित रूप में तैयार करनी पड़ती है। कक्षा शिक्षण में सहायक होती है।

पाठ-योजना के चरण (Steps of Lesson Plan)

पाठ-योजना कई चरणों से होकर गुजरती है। यद्यपि इसका प्रत्येक चरण काफ़ी महत्त्व रखता है लेकिन ज्ञान के पक्ष से प्रस्तुतीकरण व पुनरावृत्ति अपने-आप में बिशेष महत्त्व रखते हैं क्योंकि इसका सीधा संबंध पाठ से होता है। कुल मिलाकर कहा ज़ सकता है कि पाठ-योजना जो शिक्षक द्वारा तैयार की जाती है, वह कई महत्त्वपूर्ण चणो से गुजर कर आती है। इस संबंध में हर्बट ने पाठ-योजना के कई चरण बताए हैं, जिनका विस्तृत वर्णन इस प्रकार से है-

1. साधारण उद्देश्य (General Aims)- सामाजिक अध्ययन को पढ़ाने के कुछ आम उद्देश्य हैं जो लगभग सभी विषयों में पाए जाते हैं, इन उद्देश्यों का वर्णन इस प्रकार है-
    • सामाजिक अध्ययन के विषय के प्रति विद्यार्थियों में रुचि पैदा करना।
    • विद्यार्थियों को कल्पना-शक्ति का विकास करना।
    • राष्ट्रीय तथा अन्तर्राष्ट्रीय समझ पैदा करना।
    • लोकतांत्रिक तथा तानाशाही सरकारों के संबंध में जानकारी देना।
    • बच्चों में अच्छी नागरिकता के गुणों का संचार करना।
    • भूतकाल की घटनाओं के आधार पर भविष्य के लिए तैयार करना।
    • बच्चों में नेतृत्व के गुणों का संचार करना।
    • बच्चों की मानसिक शक्ति व वैज्ञानिक दृष्टिकोण का विकास करना।
2. विशिष्ट उद्देश्य (Specific Aims) - सामाजिक अध्ययन के उपविषय की पढ़ाने के निश्चित उद्देश्य होते हैं। यह उद्देश्य विभिन्न पाठ्यों पर आधारित होते हैं। अग शब्दों में विशिष्ट उद्देश्य पाठ दर पाठ बदलते रहते हैं ।

3. पूर्व ज्ञान (Previous Knowledge) - पूर्व ज्ञान पर आधारित होना चाहिए क्योंकि ऐसा रात होता है और साथ ही पाठ का सामान्यत: विकास पाठ-योजना की तैयारी में पूर्व ज्ञान पर विशेष ध्यान देना प्रानसिक स्तर का पता लगाना चाहिए।

4. शिक्षण सामग्री (Teaching aids) -
शिक्षक सहायक सामग्री का | प्रयोग करके शिक्षण को रोचक और विषय को स्पष्टता दे सकता है। शिक्षण सामग्री को तीन स्थितियों में प्रयोग में लाया जा सकता है। पाठ प्रारम्भ करते समय, पाठ के विकास में और पाठ की दोहराई के समय शिक्षण सामग्री का प्रयोग करते समय इस बात पर अवश्य ध्यान रखना चाहिए कि यह बच्चों के मानसिक स्तर के अनुकूल तथा प्रभावशाली हो।

5. शिक्षण विधि (Teaching Method)- पाठ शिक्षण समय शिक्षक आवश्यकतानुसार विधियों का चयन करता है। सामाजिक अध्ययन विषय में विधियों का चयन उपविषय के अनुसार होता है। इससे शिक्षण को स्थायी ब प्रभावशाली बनाया जा सकता है।

6. भूमिका/प्रस्तावना (Introduction) - भूमिका किसी भी पाठ को प्रभावशाली ढंग से प्रस्तुत करने का महत्त्वपूर्ण ढंग है और अच्छी भूमिका बाँधना शिक्षक पर निर्भर करता है। इसलिए विद्यार्थियों को पूर्व जानकारी के उद्देश्य से कुछ प्रश्न पूछे जाते तथा अन्तिम प्रश्‍न उपविषय से संबंधित होता है। इसके माध्यम से शिक्षक उपविषय में प्रवेश करता है। भूमिका के लिए कहानी, तस्वीरों, कविता व चार्ट की सहायता ली जा सकती है।

7.उद्देश्य कथन (Statement of Aim) - भूमिका के अंतर्गत प्रश्न पूछने के ` पश्चात्‌ शिक्षक अपने उपविषय की घोषणा करता है कि आज वह इस उपविषय के ` संबंध में पढ़ाएगा। उपविषय की घोषणा करने के पश्चात्‌ बह अपना पाठ श्याम-पट्ट पर लिखता है।

8. प्रस्तुतीकरण (Presentation) - उपविषय की घोषणा के बाद शिक्षक उसका प्रस्तुतीकरण करता है। इसके दौरान वह पाठ को कई चरणों में बाँट लेता है जिससे विद्यार्थियों को क्रमानुसार ज्ञान प्राप्त हो। इस समय वह पाठ से संबंधित विधियों, ' उपायों तथा सहायक सामग्री आदि का प्रयोग भी करता है। प्रस्तुतीकरण के दौरान शिक्षक बच्चों के मन को उत्तेजित करता है ताकि वह अधिक-से-अधिक ज्ञान प्राप्त कर पाए।

पाठय योजना के लाभ (Advantages of Lesson Plan)

पाठ-योजना का शिक्षक के लिए उतना ही महत्त्व है जितना किसी व्यक्ति को जीवित रहने के लिए पानी और भोजन। इसके अभाव में प्रभावशाली शिक्षण की कल्पना नहीं की जा सकती। पाठ-योजना का निर्माण करने वाले सामाजिक अध्ययन के शिक्षक के कई लाभ हैं, जिनका विस्तृत वर्णन इस प्रकार है :

1. उचित वातावरण (Proper Environment) - पाठ-योजना का शिक्षक को सर्वोच्च लाभ यह होता है कि इससे कक्षा में शिक्षण का उचित वातावरण बनता है। यदि शिक्षक पाठ-योजना तैयार करके कक्षा में प्रवेश करता है तो उसका समस्त ध्यान अपने उपविषय पर रहता है जिससे बच्चों की एकाग्रता उसमें बनी रहती है जो शिक्षण के लिए आवश्यक है।

2. मनोवैज्ञानिक शिक्षण (Psychological Teaching) - पाठ-योजना बनाते समय शिक्षक उपविषय से संबंधित शिक्षण की रणनीतियों, तकनीकों, सहायक साधनों आदि का प्रयोग विद्यार्थियों की रुचियों, योग्यताओं, आवश्यकताओं तथा सीमाओं आदि को ध्यान में रख कर करता है। ये सभी तकनीकें या साधन मनोवैज्ञानिक शिक्षण का आधार हैं । इसलिए पाठ-योजना का मुख्य लाभ इसका मनोवैज्ञानिक शिक्षण है।

3. उचित शिक्षण सामग्री का चयन (Selection of Proper Teaching Aid)- पाठ-योजना को सही रूप-रेखा देने का अन्य लाभ यह है कि इससे शिक्षक उपविषय से संबंधित उचित शिक्षण सामग्री का चयन भी कर सकता है तथा साथ ही | अनिवार्य शिक्षण सामग्री का निर्माण भौ कर सकता है। जिससे विद्यार्थी आसानी से ज्ञान ग्रहण कर सकें।

4. सीमित विषय-वस्तु (Limited Syllabus) - पाठ-योजना निर्माण से शिक्षक को अन्य लाभ यह होता है कि इससे वह विद्यार्थियों को आवश्यकतानुसार यह ध्यान में रखते हुए विषय-वस्तु को सीमित कर सकता है तथा सम्पूर्ण विषय की | खण्डों में पढ़ां सकता है। विषय-वस्तु को सीमित करने के लिए शिक्षक उपविषय की अनावश्यक बातों को छोड़ भी सकता है जिससे विद्यार्थियों को विषय-वस्तु समझने में सहजता होती है।

5. कक्षा में अनुशासन (Discipline in Class-room) - पाठ-योजना बनाते समय कक्षा में अनुशासन बना रहता है क्योंकि शिक्षक को यह सुनिश्चित होता है कि कब, क्या तथा कैसे करना है। वह विद्यार्थियों को कार्य मे लगाए रखता है, जिससे अनुशासन को लेकर कक्षा में किसी प्रकार की समस्या नहीं आती और सभी सही ढंग से शिक्षा ग्रहण करते हँ |

6. मूल्यांकन (Evaluation) - पाठ-योजना की सहायता से शिक्षक विद्यार्थियों प्रप्त किए गए ज्ञान का उचित मूल्यांकन कर सकता है। अत: इससे कक्षा मे विभिन्न बुद्धि वाले विद्यार्थियों की जानकारी प्राप्त हो जाती है। इस चरण में अध्यापक सम्पूर्ण प्रक्रिया का मूल्यांकन करता है।

7. पूर्व ज्ञान पर आधारित (Based on Previous Knowledge) - पाठ योजना के माध्यम से शिक्षक पूर्व-ज्ञान के आधार पर विद्यार्थियों को नए ज्ञान की जानकारी देता है। यह विद्यार्थियों को इस योग्य बनाता है कि बह संबंधित ज्ञान को ` सरलता से प्राप्त कर पाएं तथा शिक्षक अपने उद्देश्यों की प्राप्ति कर सके।

8. शिक्षण-कलाओं का विकास (Development of Teaching Skills) - पाठ-योजना के माध्यम से शिक्षक विभिन्न प्रकार की शिक्षण-कलाओं का विकास करता है तथा विषय के शिक्षण के समय वह विभिन्न उपायों से विषय को और भी प्रभावशाली ढंग से पेश करता है।

9. क्रियाओं का निर्धारण (Determining the Activities) - पाठ-योजना में शिक्षक और विद्यार्थियों की क्रियाएं पूर्व निर्धारित होती हैं। इसका निर्माण करते समय शिक्षक इस बात का निर्णय कर लेता है कि वह तथा कक्षा के विद्यार्थी उपविषय के अतर्गत किन-किन क्रियाओं में भाग लेंगे। इससे शिक्षक तथा विद्यार्थी दोनों कक्षा में क्रियाशील रहते हैं और दोनों के सम्बन्धों में दृढ़ता आती है।

10. समय तथा शक्ति की बचत (Saving Time and Energy) - पाठ- योजना का एक अन्य महत्त्वपूर्ण लाभ यह है कि इसमे शिक्षक तथा विद्यार्थियों के समय व शक्ति की बचत होती है क्योंकि पाठ पूर्व नियोजित होता है और शिक्षक जानता होता है।

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पाठ्य योजना के प्रारूप - Formate of lesson plan-


1.


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Hey! My name is Raghavendra Tiwari, a professional educator, website designer, and content creator from Anuppur (M.P.). I love to teach, create interesting things, and share knowledge. Contact me for live classes, notes and to create a website.

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