सर्वोत्तम 100+ संस्कृत श्लोक -हिंदी अर्थ सहित | Best Sanskrit Shlok with Hindi Meaning - Ischool24
Ischool24 - Android App On Playstore Click - Download!

सर्वोत्तम 100+ संस्कृत श्लोक -हिंदी अर्थ सहित | Best Sanskrit Shlok with Hindi Meaning

संस्कृत भाषा सभी भाषाओं में से सबसे प्राचीन भाषा मानी जाती है, संस्कृत श्लोक से संबंधित श्लोकों का उदाहरण अर्थ सहित पढ़ेंगे कक्षा में हमेशा दिए जाते ह

संस्कृत भाषा सभी भाषाओं में से सबसे प्राचीन भाषा मानी जाती है, संस्कृत श्लोक Sanskrit shlok से संबंधित श्लोकों का उदाहरण अर्थ सहित पढ़ेंगे कक्षा में हमेशा दिए जाते हैं लेकिन कम समय होने के कारण हम उनके अर्थों को ग्रहण नहीं कर पाते जिसके कारण हमें संस्कृत भाषा से रूचि कम होने लगती है और हमारे अच्छे नंबर नहीं आ पाते हैं

संस्कृत sanskrit shlok के श्लोक अर्थ सहित 

1. सर्वेभ्यः सुखिनः सन्तु, सर्वे सन्तु निरामयाः।

सर्वे भद्राणि पश्यन्तु, मा कश्चित् दुःखभाग्भवेत्॥

अर्थ:

सभी लोग सुखी रहें, सभी स्वस्थ रहें।

सभी को भलाई मिले, किसी को भी दुःख न आए॥


2. अहिंसा परमो धर्मः, धर्म हिंसा तथैव च।

अहिंसा परमं दानं, धर्मो हि परमं तपः॥

अर्थ:

अहिंसा सर्वोपरि उत्कृष्ट धर्म है, और हिंसा भी वैसे ही उत्कृष्ट अधर्म है। 

अहिंसा सबसे श्रेष्ठ दान है, और धर्म सबसे श्रेष्ठ तपस्या है॥


3. मातृदेवो भव, पितृदेवो भव, आचार्यदेवो भव, अतिथिदेवो भव।

अर्थ:

माता जी देवी के समान हैं, पिता जी देवताओं के समान हैं, 

आचार्य जी देवताओं के समान हैं, 

और अतिथि जी भगवान के समान हैं।


4. उत्तिष्ठत जाग्रत प्राप्य वरान्निबोधत।

क्षुरस्य धारा निशिता दुरत्यया दुर्गं पथस्तत्कवयो वदन्ति॥

अर्थ:

उठो, जागो, प्राप्त करो उच्चतम ज्ञान को,

 बाधाओं की धारा तेजी से बहती है, 

वे रास्ते दुर्गं (दुष्कर) हैं, जिन पर कवियों ने कहा है॥

जन्मदिन की शुभकामनाएं संस्कृत के श्लोक sanskrit shlok अर्थ सहित


1. जन्मदिने शुभं भवतु, जीवने शुभं भवतु च।

भूते शुभं भवतु ते, भविष्ये शुभं भवतु च॥

अर्थ:

तुम्हारे जन्मदिन पर शुभ हो, तुम्हारे जीवन में शुभ हो। तुम्हारे पश्चात् के भूतकाल में शुभता हो, और तुम्हारे भविष्य में शुभता हो॥

2. आयुरारोग्यसौख्यं प्राप्त्यर्थं जन्मदिनं मम।

ईश्वरः त्वद्दयालुत्वात् पुण्यं च समवाप्नुयात्॥

अर्थ:

मेरे जन्मदिन के लिए, आयु, आरोग्य और सुख की प्राप्ति के लिए, 

ईश्वर मेरी दयालुता के कारण पुण्य प्राप्त करे॥

3. त्वं जीवनं सुखं चापि, त्वं देहो भोग्यं च ते।

त्वं ज्ञानं च प्रज्ञाश्च, त्वं श्रेयः परमं प्रिये॥

अर्थ:

तुम्हीं हो जीवन और सुख, तुम्हारा ही शरीर और उसका आनंद तुम्हे प्राप्त होता है। तुम्हीं हो ज्ञान और बुद्धि, तुम्हारा ही सबसे उत्कृष्ट श्रेयस्कर और प्रिय है॥

4. स्वागतं ते जन्मदिने, शुभं ते जीवने।

सन्तुष्टिरस्तु ते सर्वे, भूयात् ते प्रियवादनाः॥

अर्थ:

तेरे जन्मदिन का हार्दिक स्वागत हो, तेरे जीवन में शुभता हो। सभी तुझे संतुष्टि प्राप्त हो, और तुझे आशीर्वाद मिले॥

5. जन्मदिने शुभतां ते, सुखिनः सन्तु पार्थिवाः।

वर्धतां ते चिरं जीव, ऐश्वर्यं च समृद्धिमान्॥

अर्थ:

तेरे जन्मदिन को शुभ करें, तू सुखी रहे और पृथ्वी पर उन्नति प्राप्त करे। तेरी आयु लंबी हो और तू धनी और समृद्ध हो॥

6. जन्मदिनं त्वं नवं शोभनं, सुप्रीत्या च सुखेन च।

यशश्च प्राप्यतां ते च, सर्वेभ्यः प्रीतिरस्तु ते॥

अर्थ:

तेरा जन्मदिन नया और सुंदर हो, और तू हमेशा प्रसन्नता और सुख से भरा रहे। तेरी प्रशंसा हो और सभी तुझसे प्यार करें॥

सफलता पर संस्कृत श्लोक Sanskrit Shlok अर्थ सहित

1. कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।

मा कर्मफलहेतुर्भूर्मा ते सङ्गोऽस्त्वकर्मणि॥

अर्थ:

तेरा अधिकार कर्मों में ही है, परन्तु कभी भी फलों में नहीं। तू कर्मफल के लिए कर्म न कर, और कर्म में आसक्ति न हो॥

2. योगस्थः कुरु कर्माणि संगं त्यक्त्वा धनञ्जय।

सिद्ध्यसिद्ध्योः समो भूत्वा समत्वं योग उच्यते॥

अर्थ:

धनञ्जय (अर्जुन), योग में स्थिर रहकर कर्म करो और आसक्ति को छोड़ दो। सिद्धि और असिद्धि के प्रति समान बनकर समत्व को योग कहते हैं॥

3. नियतं कुरु कर्म त्वं कर्म ज्यायो ह्यकर्मणः।

शरीरयात्रापि च ते न प्रसिद्ध्येदकर्मणः॥

अर्थ:

तू नियमित रूप से कर्म कर, क्योंकि कर्म अकर्म से उत्कृष्ट है। तेरे शरीरी धारण के बिना भी अकर्म की सिद्धि नहीं हो सकती॥

4. उद्यमेन हि सिद्ध्यन्ति कार्याणि न मनोरथैः।

न हि सुप्तस्य सिंहस्य प्रविशन्ति मुखे मृगाः॥

अर्थ:

कार्यों की सिद्धि उद्यम (प्रयास) से होती है, मनचाहे इच्छाओं से नहीं। क्योंकि सोते हुए सिंह के मुँह में भी मृग प्रविष्ट नहीं होते॥

वीरता पर संस्कृत श्लोक लिखिए

1. युद्धे च धैर्यं प्रकटीकरोति वीरताम्।

संघे च संग्रामे विजयं प्रदर्शयति॥

अर्थ:

युद्ध में साहस वीरता को प्रकट करता है। संघर्ष में विजय दिखाता है॥

2. वीरो हि वीरजन्मानि यः प्रधानं समर्पयेत्।

स वीर्यवान् भवेत् लोके वीरत्वं च प्रयच्छति॥

अर्थ:

जो व्यक्ति वीरता को सर्वोपरि स्वीकार करता है, वही व्यक्ति वीर्यशाली बनता है और वीरता को विश्व में प्रदान करता है॥

3. वीरत्वं च पराक्रमं च यशो निःश्रेयसं च वा।

अर्जुनं दृष्ट्वा गाण्डीवं स्वधर्मं च निधाय च॥

अर्थ:

वीरता, पराक्रम, यश और निःश्रेयस (उत्कृष्टता) - ये सब गुण अर्जुन ने देखकर, अपना धनुष गाण्डीव और अपना स्वधर्म संभालकर धारण किया॥

4. युद्धे जित्वा विजित्यैनं यः प्राणैर्वीर्यमाप्नुयात्।

स वीरः सर्वदा युद्धे प्रसन्नो दीर्घसौख्यदः॥

अर्थ:

जो व्यक्ति युद्ध में विजय प्राप्त करके अपने प्राणों के साथ वीरता को प्राप्त करता है, वही वीर हमेशा युद्ध में प्रसन्न रहता है और दीर्घकालिक सुख का दाता होता है॥

प्रेम पर संस्कृत श्लोक लिखिए-

1. सहानुभूतिसुखदुःखेषु समं प्रेम विनियोजयेत्।

प्रेमेणानुभवे सर्वेषु सदा सन्तुष्टः प्रसीदति॥

अर्थ:

प्रेम के माध्यम से सुख-दुःख में सहानुभूति व्यक्त करें। प्रेम के द्वारा सभी में अनुभव करते हुए सदैव संतुष्ट रहें और प्रसन्न रहें॥

2. प्रेमं वितर्कयन्तः सर्वे भजन्ति पण्डिताः सदा।

तत्त्वं चिन्तयतः सर्वे प्रेमानन्दं विधानतः॥

अर्थ:

सदा विचार करते हुए सभी ज्ञानी लोग प्रेम को विचार करते हैं। सभी तत्त्व को विचार करते हुए प्रेम की आनंदमयता का अनुभव करते हैं॥

3. प्रेमः कर्मण्यनुशीलनं सर्वदा सन्तुष्टः समः।

तस्मिन्नेव वर्तते लोके न कामक्रोधभारते॥

अर्थ:

प्रेम द्वारा कर्म को निर्वहने में सदैव संतुष्ट और समभाव रखते हुए ही लोग इस जगत में व्यवहार करते हैं, न काम और क्रोध के भार में॥

4. अहमेव परमं प्रेम रूपं विश्वस्य जगतः।

यथा जीवामि तथा चैनं प्रेमं च व्यवसायिनम्॥

अर्थ:

मैं ही सर्वव्यापी परम प्रेम का स्वरूप हूँ, जो संसार के सभी जीवों में व्याप्त है। जैसे मैं रहता हूँ, उसी प्रेम और व्यवसायिक प्रेम भी हूँ॥

5. प्रेमः सर्वेषु भूतेषु ज्ञानं यः प्रकाशयेद्विभुः।

सर्वभूतानि सन्निधाय योगं चेष्टितुमार्हति॥

अर्थ:

जो प्रेम सभी प्राणियों में व्याप्त होता है और ज्ञान का प्रकाश करता है, वही विभु (ईश्वर) है। वह सभी प्राणियों को साक्षात्कार करके योग का अभ्यास करने के योग्य है॥

श्रीमद् भागवत महापुराण संस्कृत श्लोक Sanskrit Shlok

1. निर्ममो निरहंकारो निर्मोहो निर्दयो निर्लोभः।

निराशीरपरिग्रहः शुचिर्मौनी निराकुलः॥

अर्थ:

*जो व्यक्ति मामता रहित, अहंकार रहित, मोह रहित, दयाहीन, लोभ रहित है। जो निराशा के साथ, आदर्शों को अपने नहीं करता, शुद्ध, मौनी, चिन्तामुक्त है॥

Note: *The provided verse is not from the Shrimad Bhagavatam, but it reflects the qualities of an ideal person described in the scripture.

2. नैनं छिन्दन्ति शस्त्राणि नैनं दहति पावकः।

न चैनं क्लेदयन्त्यापो न शोषयति मारुतः॥

अर्थ:

इस आत्मा को शस्त्र नहीं छेदते, अग्नि नहीं जलाती, पानी नहीं गीला करता और वायु नहीं सुखाती॥

3. यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत।

अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम्॥

अर्थ:

हे भारत! जब-जब धर्म की हानि और अधर्म का प्रबल होता है, तब-तब मैं अपने आपको प्रकट करता हूँ और संसार की सुरक्षा के लिए उठता हूँ॥

Note- यह श्लोक श्रीमद् भगवद् गीता महाभारत के अध्याय 4, श्लोक 7 में पाया जाता है।

4. यत्र योगेश्वरः कृष्णो यत्र पार्थो धनुर्धरः।

तत्र श्रीर्विजयो भूतिर्ध्रुवा नीतिर्मतिर्मम॥

अर्थ:

जहां योगेश्वर कृष्ण हैं, और जहां धनुषधारी अर्जुन हैं। वहां श्री (श्रीलक्ष्मी), विजय (विजयलक्ष्मी), भूति (सफलता), ध्रुवा (स्थायित्व), नीति (नैतिकता), मति (बुद्धि) और ममत्व (ममता) होती है॥

यह श्लोक श्रीमद् भगवद् गीता महाभारत के अध्याय 18, श्लोक 78 में पाया जाता है।

5. आत्मनः प्रतिकूलानि परेषां न समाचरेत्।

यः समं पश्यति योऽर्थान्वितरान्न स देहिनः॥

अर्थ:

आत्मा के लिए अनुकूल नहीं होने वाले कार्यों को दूसरों के लिए न करे। जो अपने को और दूसरों को समान रूप से देखता है, वह शरीरधारी पुरुष है॥

यह श्लोक श्रीमद् भागवत पुराण के 10.84.13 में प्रकट होता है।

6. ज्ञानं परमं बलं च धर्मः सर्वेषां हिते रतः।

तस्माद्धर्मं प्रवक्ष्यामि यद्यत्र यत्र धर्मिकः॥

अर्थ:

ज्ञान सबसे बड़ी शक्ति है और धर्म सभी के हित में रमण करता है। इसलिए, मैं जहां-जहां धार्मिकता होती है, वहां-वहां धर्म का प्रचार करूँगा॥

यह श्लोक महाभारत के वानपर्व के अध्याय 188 में प्रमुखता से प्रकट होता है।

7. अज्ञानतिमिरान्धस्य ज्ञानाञ्जनशलाकया।

चक्षुर्मिलितं येन तस्मै श्रीगुरवे नमः॥

अर्थ:

जो अज्ञान के अंधकार में है, उसके ज्ञान को अन्धकारच्छेदक ज्ञानाञ्जन शिला द्वारा प्रकाशित किया जाता है। उस गुरु को मेरा नमन है, जिसके द्वारा मेरे आंखें खुली हैं॥

यह श्लोक गुरु स्तोत्रम् के अंतर्गत है और गुरु पूर्णिमा व पूर्वमीमांसा वेदान्तादि ग्रंथों में प्रयुक्त होता है।

8. गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णुः गुरुर्देवो महेश्वरः।

गुरुः साक्षात्परं ब्रह्म तस्मै श्रीगुरवे नमः

अर्थ:

गुरु ब्रह्मा है, गुरु विष्णु है, गुरु देव महेश्वर है। गुरु स्वयं परम ब्रह्म है, उस श्रीगुरु को मेरा नमन है॥

यह श्लोक गुरु स्तोत्रम् के अंतर्गत है और गुरु पूर्णिमा व पूर्वमीमांसा वेदान्तादि ग्रंथों में प्रयुक्त होता है। 

9. मातृदेवो भवः पितृदेवो भवः।

आचार्यदेवो भवः अतिथिदेवो भवः।

यान्यनवद्यानि कर्माणि तानि सेवितव्यानि॥

अर्थ:

माता देवी तुम्हारी देवी हो, पिता देवता तुम्हारे पिता हो। आचार्य देवता तुम्हारे गुरु हो, और अतिथि देवता तुम्हारे अतिथि हो। जो कर्म निर्दोष हैं, उन्हें सेवन करना चाहिए॥

यह श्लोक वेद पुराणों में प्रयुक्त होता है और परम्परागत आदर्शों को संकेतित करता है।

सरस्वती वंदना संस्कृत श्लोक Sanskrit Shlok अर्थ सहित

1. या कुन्देन्दुतुषारहारधवला या शुभ्रवस्त्रावृता।

या वीणावरदण्डमण्डितकरा या श्वेतपद्मासना॥

या ब्रह्माच्युतशंकरप्रभृतिभिर्देवैः सदा वन्दिता।

सा मां पातु सरस्वती भगवती निःशेषजाड्यापहा॥

अर्थ:

जिसका मुख चंद्रमा की किरणों के समान स्नेहपूर्ण है, जो शुभ्र वस्त्र से आच्छादित है। जो वीणा, वरदंड, और मणि से अलंकृत है, और जो श्वेत पद्मासन में आसीन है। जो ब्रह्मा, विष्णु, शंकर, और अन्य देवताओं द्वारा सदा पूजित है। मेरी उस सरस्वती देवी, भगवती सरस्वती हमेशा संपूर्ण जड़ता को दूर करें॥

यह Sanskrit Shlok, सरस्वती वंदना का हिंदी अनुवाद है और गणपति पुराण में प्रमुखता से प्रकट होता है। यह संस्कृत श्लोक सरस्वती माता की प्रशंसा करता है और उनकी कृपा का आशीर्वाद मांगता है।

2. वागीश्वरी अनुशासितार्थप्रदात्री वाग्देवता।

वागरम्भामणी वाणी विद्यादायिनी नमोऽस्तु ते॥

अर्थ:

वागीश्वरी, अर्थ की प्रदान करने वाली, वाक् देवता हे।

वाणी, विद्या की प्राप्ति करने वाली हे। मैं आपको नमस्कार करता हूँ॥

यह Sanskrit Shlok, सरस्वती माता की प्रशंसा करता है और उनकी कृपा और आशीर्वाद की प्रार्थना करता है। यह श्लोक सरस्वती वंदना और स्तोत्रों में प्रयुक्त होता है।

3. सरस्वति नमस्तुभ्यं वरदे कामरूपिणि।

विद्यारम्भं करिष्यामि सिद्धिर्भवतु मे सदा॥

अर्थ:

हे सरस्वती माता, आपको नमस्कार है। आप हैं कामरूपिणी, अर्थात् भक्तों के मनोकामनाओं को पूरा करने वाली हैं। मैं विद्यारम्भ कर रहा हूँ, कृपया मेरे लिए सदा सिद्धि की प्राप्ति हो।

यह श्लोक सरस्वती माता के प्रति समर्पण और आशीर्वाद की प्रार्थना को व्यक्त करता है। इसे विद्यार्थी विद्यालयों और अन्य शिक्षा संस्थानों में उपयोग किया जाता है।

4. सरस्वति नमस्तुभ्यं वरदे कामरूपिणि।

विद्यारम्भं करिष्यामि सिद्धिर्भवतु मे सदा॥

अर्थ:

हे सरस्वती माता, आपको नमस्कार है। आप हैं कामरूपिणी, अर्थात् भक्तों के मनोकामनाओं को पूरा करने वाली हैं। मैं विद्यारम्भ कर रहा हूँ, कृपया मेरे लिए सदा सिद्धि की प्राप्ति हो।

यह श्लोक सरस्वती माता के प्रति समर्पण और आशीर्वाद की प्रार्थना को व्यक्त करता है। इसे विद्यार्थी विद्यालयों और अन्य शिक्षा संस्थानों में उपयोग किया जाता है।

5. अज्ञानतिमिरान्धस्य ज्ञानाञ्जनशालाकया।

चक्षुरुन्मीलितं येन तस्मै श्रीगुरवे नमः॥

अर्थ:

जो अज्ञान के अंधकार से ढँका हुआ है, उसे ज्ञान के अंजन से जलाते हैं। जो आँखें बंद हो गई हैं, उन्हें जिनकी कृपा से उठाते हैं। मेरा नमन उन श्रीगुरुओं को है॥

यह श्लोक गुरु के महत्व को व्यक्त करता है। गुरु को सच्चे ज्ञान का प्रतिपादन करने वाला, अज्ञान के अंधकार से छुड़ाने वाला और शिष्य को ज्ञान की प्राप्ति में सहायता करने वाला माना जाता है।

6. गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णुर्गुरुर्देवो महेश्वरः।

गुरुरेव परं ब्रह्म तस्मै श्रीगुरवे नमः॥

अर्थ:

गुरु ब्रह्मा है, गुरु विष्णु है, गुरु देव महेश्वर है। गुरु ही परम ब्रह्मा है, उन्ही को नमस्कार है॥

यह Sanskrit Shlok गुरु की महिमा को व्यक्त करता है और गुरु को ब्रह्मा, विष्णु, महेश्वर, और परब्रह्मा का अभिन्न रूप मान्य करता है। इसे गुरु पूजा और गुरु भक्ति में उपयोग किया जाता है।

7. सत्यं वद। धर्मं चर। स्वाध्यायान्मा प्रमदः।

आचार्याय प्रियं धनमाहार्यत प्रजातन्तुम्॥

अर्थ:

सत्य कहो, धर्म का पालन करो, अपनी स्वाध्याय में मोहित न होने दो।

अपने आचार्य को प्रिय धन मानो, और प्रजातन्तु को बढ़ावा दो॥

यह श्लोक शिष्य-गुरु सम्बंध और ज्ञान की महत्ता पर ध्यान केंद्रित करता है। यह शिक्षा देता है कि सत्य कहें, धर्म का पालन करें, आत्मस्वाध्याय में लगे रहें और आचार्य को महत्वपूर्ण समझें।

धर्म आधारित संस्कृत श्लोक Sanskrit Shlok अर्थ सहित

1. धर्मे चार्थे च कामे च मोक्षे च भरतर्षभ।

यदि सद्यः प्रयातोऽपि न तस्याम्यहमर्चनम्॥

अर्थ:

हे भरतवंश के श्रेष्ठ राजा, धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष में, यदि कोई व्यक्ति भलीभांति निर्मल होकर चला जाए, तो मैं उसका सम्मान नहीं करूँगा॥

यह Sanskrit Shlok, धर्म की महत्ता को व्यक्त करता है। यह कहता है कि धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष यह चारों प्रमुख पुरुषार्थ हैं और धर्म के पालन करने वाले को हमेशा सम्मान प्राप्त होता है।

2. यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवताः।

यत्रैतास्तु न पूज्यन्ते सर्वास्तत्राफलाः क्रियाः॥

अर्थ:

जहाँ महिलाएं पूज्य होती हैं, वहाँ देवताएं विराजमान होती हैं।

जहाँ वे नहीं पूज्य होतीं, वहाँ सभी क्रियाएं विफल होती हैं॥

यह श्लोक महिलाओं के सम्मान और महत्व को व्यक्त करता है। यह कहता है कि जहाँ महिलाएं पूज्य होती हैं, वहाँ देवताओं का निवास होता है और वहाँ सभी कार्य सिद्ध होते हैं। इसलिए महिलाओं का सम्मान करना और उन्हें समानता देना महत्वपूर्ण है।

3. सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामयाः।

सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मा कश्चिद्दुःखभाग्भवेत्॥

अर्थ:

सभी सुखी रहें, सभी स्वस्थ रहें।

सभी भलाई को देखें, किसी को भी दुःख का अनुभव न हो।

यह श्लोक सभी के सुख और स्वास्थ्य की कामना को व्यक्त करता है। यह कहता है कि सभी लोग सुखी और स्वस्थ रहें, सभी अच्छाई को देखें और किसी को भी दुःख का सामर्थ्य न हो। यह हमें सभी के साथ सहानुभूति और समरसता का संदेश देता है।

4. वसुधैव कुटुम्बकम्।

अर्थ:

वसुधा उन्नति का एक परिवार है।

यह श्लोक मानवता के सर्वोच्चतम मूल मूल्य को व्यक्त करता है। यह कहता है कि समस्त मानव एक परिवार के सदस्य हैं और वसुधा (पृथ्वी) हमारी सबकी माता है। इसलिए हमें सभी मानवों के साथ भाईचारे का अनुभव करना चाहिए और सभी की समृद्धि और उन्नति का समर्थन करना चाहिए।

5. तमसो मा ज्योतिर्गमय।

अर्थ:

मुझे अज्ञानता से प्रकाश की ओर ले चलो।

यह Sanskrit Shlok, ज्ञान और प्रकाश की खोज को व्यक्त करता है। यह कहता है कि हमें अज्ञानता की अवस्था से निकलकर ज्ञान की ओर आगे बढ़ना चाहिए। हमें अज्ञान के अंधकार से प्रकाश के दिशा में प्रगट होना चाहिए ताकि हम सत्य, ज्ञान और सम्पूर्णता की ओर प्रगति कर सकें।

6. आत्मनो मोक्षार्थं जगद्धिताय च।

अर्थ:

अपने मोक्ष के लिए और सारे जगत के हित के लिए।

यह श्लोक व्यापक सेवा और स्वयं का मोक्ष के प्रयास को व्यक्त करता है। यह कहता है कि हमें अपने मोक्ष के लिए प्रयास करने के साथ-साथ सभी जीवों के हित के लिए भी सेवा करनी चाहिए। हमें व्यापक दृष्टि रखनी चाहिए और सभी के साथ भाईचारे के सिद्धांत का पालन करना चाहिए।

7. अहिंसा परमो धर्मः, धर्म हिंसा तथैव च।

अहिंसा परमं धर्मं, धर्मो हिंसा तथैव च॥

अर्थ:

अहिंसा ही सबसे उच्च धर्म है, धर्म में हिंसा नहीं होती है।

अहिंसा ही सबसे उच्च धर्म है, धर्म में हिंसा नहीं होती है॥

यह श्लोक अहिंसा के महत्व को व्यक्त करता है। यह कहता है कि अहिंसा ही सबसे उच्च धर्म है और धर्म के अंतर्गत हिंसा का स्थान नहीं होता है। इसलिए हमें अहिंसा के मार्ग पर चलना चाहिए और दूसरों के प्रति शांतिपूर्ण और सहानुभूतिपूर्ण भावना रखनी चाहिए।

8. अनुभवाद् आनन्दः।

अर्थ:

आनन्द अनुभव से ही होता है।

यह श्लोक सत्य आनन्द के मूल्य को व्यक्त करता है। यह कहता है कि आनन्द केवल अनुभव से ही प्राप्त होता है और इसके लिए हमें सत्य और ज्ञान की प्राप्ति का प्रयास करना चाहिए। यह हमें यह याद दिलाता है कि सच्चा आनन्द बाहरी वस्तुओं में नहीं मिलेगा, बल्कि वह हमारे अन्तर्मन की शांति, संतुष्टि और प्रामाणिकता में ही निहित है।

9. धर्म एव हतो हन्ति, धर्मो रक्षति रक्षितः।

अर्थ:

धर्म ही विनाश करता है, धर्म ही सुरक्षा करता है।

यह Sanskrit Shlok धर्म के महत्व को व्यक्त करता है। यह कहता है कि धर्म का पालन करने वाले को ही सुरक्षा मिलती है और धर्म के विनाश करने वाले का अवश्य ही नाश होता है। इसलिए हमें अपने धर्म के प्रति निष्ठा और समर्पण रखना चाहिए ताकि हम आत्मनिर्भरता, समृद्धि और समस्तता की प्राप्ति कर सकें।

10. सर्वेभ्यः सुखिनः सन्तु, सर्वेभ्यः निरामयाः भवन्तु।

सर्वेभ्यः भद्राणि पश्यन्तु, मा कश्चिद् दुःखभाग्भवेत्॥

अर्थ:

सभी सुखी हों, सभी रोगमुक्त हों।

सभी को शुभ दिखाई दें, किसी को दुःख न आए॥

यह Sanskrit Shlok सभी के हित की कामना को व्यक्त करता है। यह कहता है कि सभी सुखी और स्वस्थ रहें, सभी को शुभ दिखाई दें और किसी को दुःख न हो। यह हमें समाजिक समरसता, सहभागिता और सभ्यता की प्राथमिकता को याद दिलाता है। हमें दूसरों के सुख-दुःख में सहानुभूति और समर्पण दिखाना चाहिए।

घमंड पर आधारित संस्कृत श्लोक अर्थ Sanskrit Shlok सहित

1. मदं मन्ये सर्वत्र विनश्यति।मदश्च विनश्यति सर्वतः।मदस्य न प्रशांति यन्ति वाञ्छन्ति।यदि ते नाशयन्ति ते परेषाम्॥
अर्थ:अहंकार सब जगह नाश कर देता है।अहंकार का नाश सब जगह होता है।अहंकार वाले न शांति प्राप्त करते हैं, न चाहते हैं।अगर तुम अहंकारी लोगों को नष्ट करोगे, तो वे तुम्हारे पक्षवालों के लिए नष्ट हो जाएँगे॥
यह Sanskrit Shlok  घमंड और अहंकार के महत्व को व्यक्त करता है। यह कहता है कि घमंड सभी जगह नाश कर देता है और घमंडी लोगों का नाश भी सब जगह होता है। घमंडी लोगों को शांति नहीं मिलती और वे चाहते भी नहीं हैं। अगर हम अहंकारी लोगों को नष्ट करते हैं, तो वे हमारे पक्षवालों के लिए नष्ट हो जाते हैं। इसलिए हमें अहंकार को छोड़कर हमेशा विनम्रता, सम्मान और सहजता का पालन करना चाहिए।
2. ध्वंसेन प्रवृत्ता बुद्धिः, सदा निग्रहमेव च।ध्वंसे हि विजयो राजन्, धैर्येणापि न जायते॥
अर्थ:ध्वंसे हुए बुद्धि सदैव निग्रह करनी चाहिए।ध्वंस के माध्यम से ही विजय होती है, राजन्, धैर्य के बिना विजय नहीं होती॥
यह श्लोक ध्वंस या पतन के माध्यम से धैर्य और संयम की महत्वपूर्णता को व्यक्त करता है। यह कहता है कि जब हम ध्वंस हुए हालातों से भी संयम बनाए रखते हैं, तो हम वास्तविक विजय प्राप्त करते हैं। धैर्य के बिना विजय सम्भव नहीं होती है। इसलिए हमें सभ्यता, संयम, और मनोबल के साथ ही अडिग बने रहना चाहिए।
3. सत्यं वद। धर्मं चर। स्वाध्यायान्मा प्रमदः।आचार्याय प्रियं धनं आहार्याय प्रियं निधिः॥
अर्थ:सत्य बोलो। धर्म का पालन करो। अपने स्वाध्याय से मत चकराओ।आचार्य को प्रिय धन मानो। निधि (धन) को प्रिय नहीं मानो॥
यह श्लोक नीति और आचार्य के महत्व को व्यक्त करता है। यह कहता है कि हमें सदैव सत्य बोलना चाहिए, धर्म का पालन करना चाहिए और स्वाध्याय के माध्यम से स्वयं को संयमित रखना चाहिए। हमें अपने आचार्य को प्रिय धन मानना चाहिए, जबकि संचय (निधि) को प्रिय नहीं मानना चाहिए। इसका अर्थ है कि धन को सावधानी से उपयोग करना चाहिए और उसे अपनी प्राथमिकता नहीं बनाना चाहिए। हमें आचार्य की सीखों का पालन करते हुए ईमानदार और न्यायप्रिय जीवन जीना चाहिए।
4. अयं निजः परो वेति गणना लघुचेतसाम्।उदारचरितानां तु वसुधैव कुटुम्बकम्॥
अर्थ:जो मनुष्य अपने को ही अपना मानता है और दूसरों को पराया, उसकी मति लघु होती है।परन्तु उदार चरित्र वाले लोगों के लिए सम्पूर्ण विश्व ही एक परिवार है॥
यह श्लोक सामाजिक समरसता और सभ्यता के महत्व को व्यक्त करता है। यह कहता है कि जो मनुष्य अपने को ही सर्वोपरि मानता है और दूसरों को पराया, उसकी मति लघु होती है। परन्तु उदार चरित्र वाले लोगों के लिए पूरा विश्व ही एक परिवार है, वे सभी मानव एक ही परिवार के सदस्य हैं। इसलिए हमें सभी मानवों के प्रति सम्मान और समरसता के साथ अपना व्यवहार करना चाहिए।
5. उत्साहस्य लक्षणं विद्या गुरुः प्रसादस्य लक्षणं।प्रियस्य वाक्यस्य लक्षणं परोपकारस्य लक्षणम्॥
अर्थ:उत्साह का लक्षण है विद्या का प्राप्ति करना, गुरु की कृपा प्राप्त करना।प्रिय वचन का लक्षण है परोपकार करना॥
यह श्लोक संघटित तरीके से उत्साह, विद्या, गुरु की कृपा, प्रिय वचन और परोपकार के सम्बंध को व्यक्त करता है। यह कहता है कि उत्साह का लक्षण है विद्या की प्राप्ति करना और गुरु की कृपा प्राप्त करना। प्रिय वचन का लक्षण है परोपकार करना, यानी दूसरों की मदद करना। इसलिए हमें उत्साह और गुरु के प्रति सम्मान रखना चाहिए, और प्रिय वचन बोलने और परोपकार करने की आदत बनानी चाहिए।
छोटी संस्कृत श्लोक एक लाइन वाले Sanskrit Shlok 
1. तमसो मा ज्योतिर्गमया।अर्थ: मुझे अन्धकार से प्रकाश की ओर ले चलो॥
2. अयं निजः परो वेति गणना लघुचेतसाम्।उदारचरितानां तु वसुधैव कुटुम्बकम्॥
अर्थ: छोटे मन वाले लोग अपने को ही अपना मानते हैं, बड़े मन वाले लोगों के लिए पूरी पृथ्वी ही परिवार होती है॥
3. अच्छं वचनं विचार्य च कर्मणि सुव्रतं नरः।सुखं दुःखं यदा पश्येदेकं तद्विपदं व्रजेत्॥
अर्थ: एक विचार के पश्चात और एक कर्म को अच्छी तरह विचार करने के बाद, जब मनुष्य सुख और दुःख दोनों को एक ही परिणाम के रूप में देखता है, तब वह सच्चे धर्म को प्राप्त करता है॥
4. शुभाशितिः सुखस्यान्ते सुखं भाग्यं विदेत् सुराः।दुःखस्यान्ते परं दुःखं न विदेत् ब्रह्मचारिणः॥
अर्थ: सुख के अंत में शुभ कथन होता है, सुख का भाग्य मिलता है स्वर्गवासियों को। दुःख के अंत में उच्चतम दुःख होता है ब्रह्मचारियों को।
5. आत्मनो मोक्षार्थं जगद्धिताय च।सर्वदा यत्नं कुरुष्व निरन्तरम्॥
अर्थ: अपने मोक्ष के लिए और समस्त जगत् की हित के लिए हमेशा सतत प्रयास करो॥
6. उत्साहस्य आत्मसंयमो धृतिर्दक्षता दया।क्षमा सत्यं दमः शान्तिर्ज्ञानं भक्तिरेव च॥
अर्थ: उत्साह, आत्मसंयम, धैर्य, कौशल्य, दया, क्षमा, सत्य, इंद्रियों का नियंत्रण, शांति, ज्ञान और भक्ति - ये ही सच्चे ज्ञानी के लक्षण होते हैं॥
7.सत्यं वद, धर्मं चर, स्वाध्यायान्मा प्रमदः।आचार्याय प्रियं धनमाहार्याद् यान्न चोद्ध्रियेत्॥
अर्थ: सत्य बोलो, धर्म का पालन करो, स्वाध्याय में मत प्रमद करो। गुरुजनों के लिए प्रिय धन को समर्पित करो और उसे न छेड़ो॥
8. स्वस्तिप्रजाभ्यः परिपालयन्तां न्यायेन मार्गेण महीं महीशाः।गोब्राह्मणेभ्यः शुभमस्तु नित्यं लोकाः समस्ताः सुखिनो भवन्तु॥
अर्थ: सभी प्रजा की कल्याण करने वाले राजा, धर्म के मार्ग से पृथ्वी को पालन करे। गो और ब्राह्मणों को हमेशा शुभ का अनुभव हो, समस्त लोग सुखी रहें॥
9. अहिंसा परमो धर्मः, धर्म हिंसा तथैव च।सर्वभूतेषु ये सदा, सत्यमेव जयते॥
अर्थ: अहिंसा ही सबसे बड़ा धर्म है, और धर्म में हिंसा नहीं होती। सब जीवों में जो सत्य सदा विजयी होता है॥
10. सर्वेभ्यः स्निग्धेभ्यः स्नेहः प्रियायाः प्रियं तथा।आत्मनस्तु कुलेभ्यश्च यः सदा प्रियवादिनः॥
अर्थ: सभी लोगों के प्रति स्नेह, प्रियता और प्रिय को प्रियतम बनाना चाहिए। लेकिन सर्वप्रिय होने के बावजूद आपके अपने आत्मा और कुल के लोगों के प्रति आप हमेशा प्रियवादी रहें॥

ब्राह्मण पर संस्कृत श्लोक Sanskrit Shlok  अर्थ सहित


1. वेदोऽखिलो धर्ममूलं स्मृतिशीले च तद्विदाम्।आचारश्चैव साधूनामात्मनस्तुष्टिरेव च॥
अर्थ: ब्राह्मणों के लिए वेद ही सब धर्म का मूल है, स्मृति उनकी धर्मशास्त्र है, साधु लोगों के लिए आचरण ही धर्म है और आत्मसंतुष्टि ही उनका एकमात्र लक्ष्य है॥
2. सर्वे ब्राह्मणाः सम्पूज्या देवता भूतेषु पूजिताः।सर्वे वेदाः पठितव्याः सर्वे यज्ञाः क्रियास्वयम्॥
अर्थ: सभी ब्राह्मणों को पूजनीय माना जाना चाहिए, देवताओं के लिए सभी ब्राह्मणों द्वारा पूजन करना चाहिए। सभी वेदों को पढ़ना चाहिए, और सभी यज्ञों को स्वयं करना चाहिए॥
3. ब्राह्मणोऽस्य मुखमासीत् बाहू राजन्यः कृतः।ऊरू तदस्य यद्वैश्यः पद्भ्यां शूद्रो अजायत॥
अर्थ: ब्राह्मण के मुख से (उत्पन्न) हुआ, राजन्य (क्षत्रिय) के द्वारा उत्पन्न हुए, ऊरु (जांघ) वैश्य के द्वारा उत्पन्न हुआ और पाद (पैर) शूद्र के द्वारा उत्पन्न हुआ॥
4. यस्य ब्राह्मणो वेदेषु पठिता जातिः कर्मभिः।तस्य वर्णाश्रमाचार्यस्य सर्वं विद्याभवेत्सुखम्॥
अर्थ: जिस ब्राह्मण ने वेदों को पढ़ा है और अपने कर्मों के द्वारा अपनी जाति की प्रशंसा की है, उस वर्णाश्रमाचार्य के लिए सब कुछ विद्या से प्राप्त होता है और उसे सुख प्राप्त होता है॥
5. न जातिभेदोऽस्ति ब्राह्मणस्य द्विजत्वेन केनचित्।वेदपठनेन विप्रस्य ब्राह्मण्यं जायते पुनः॥
अर्थ: ब्राह्मण की जाति में कोई भेद नहीं है, उसे द्विजत्व द्वारा ही प्राप्त होता है। वेद के पठन से विप्र (ज्ञानी) का ब्राह्मण्य फिर से उत्पन्न होता है॥
6. सत्यं वद | धर्मं चर | स्वाध्यायान्मा प्रमदः |आचार्याय प्रियं धनमाहृत्य प्रजातन्तुं मा व्यवच्छेत्सीः ||
अर्थ: सत्य कहो, धर्म का पालन करो, स्वाध्याय के बिना मोहित न हों, गुरु के प्रिय धन को चुरा कर न जाएं, प्रजाओं को तड़पाने से बचें॥  
7. वसुधैव कुटुम्बकम्।
अर्थ: संसार सभी के लिए एक परिवार है॥
8. अहिंसा परमो धर्मः, धर्म हिंसा तथैव च।अहिंसा परमं दानं, धर्मो हिंसा तथैव च॥
अर्थ: अहिंसा ही सबसे बड़ा धर्म है, धर्म में हिंसा नहीं होती। अहिंसा ही सबसे बड़ा दान है, धर्म में हिंसा नहीं होती॥
9. सर्वे भवन्तु सुखिनः।सर्वे सन्तु निरामयाः।सर्वे भद्राणि पश्यन्तु।मा कश्चित् दुःख भाग्भवेत्॥
अर्थ: सभी सुखी रहें।सभी रोगमुक्त रहें।सभी शुभ देखें।किसी को दुःख ना आए॥

शिव पर आधारित संस्कृत श्लोक



1. नमः शिवायै च शिवतरायै च।जया शिवा शंकरा, नमः शिवायै॥
अर्थ: शिवाय और शिवतरा शक्ति को नमस्कार।जय हो शिवा शंकरा, नमः शिवाय॥
2. नमः शिवाय विभो शङ्कराय च।कृपालुश्च भक्तानुकम्पिनाय च॥जटाधराय नीलकण्ठाय च।नमः शिवाय परमात्मने॥
अर्थ: हे विभु शिवाय और शङ्कराय नमस्कार।आप भक्तों के प्रति कृपालु हैं और उनकी करुणा करते हैं।हे जटाधारी और नीलकण्ठ धारी, आपको नमस्कार करते हैं।नमः शिवाय परमात्मने॥
3. सर्वमङ्गलमाङ्गल्ये शिवे सर्वार्थसाधिके।शरण्ये त्र्यम्बके गौरि नारायणि नमोऽस्तु ते॥
अर्थ: हे सर्वोत्तम मङ्गल, हे सर्वार्थसाधिक शिव, हे त्र्यम्बकी, गौरी, नारायणी, हम आपकी शरण में हैं। आपको नमस्कार॥
4. नगेन्द्रहाराय त्रिलोचनाय भस्माङ्गरागाय महेश्वराय।नित्याय शुद्धाय दिगम्बराय तस्मै नकाराय नमः शिवाय॥
अर्थ: हे नगेंद्रहारी, त्रिलोचन धारी, भस्मांगरागी, महेश्वर, नित्य और शुद्ध, नग्नावस्था धारी शिव, हे नकार रूपी, नमस्कार करता हूँ॥
5. कर्पूरगौरं करुणावतारं संसारसारं भुजगेन्द्रहारम्।सदावसन्तं हृदयारविन्दे भवं भवानीसहितं नमामि॥
अर्थ: हे कर्पूरगौरी रूपी, करुणा मूर्ति, संसार का सार होने वाले, जिसकी गले में सर्प हार है। हमेशा वसंत ऋतु की तरह निवास करने वाले, हृदय कमल में विराजमान, भव और भवानी सहित मैं आपको नमस्कार करता हूँ॥
6. शिवस्तुति:नमामीशमीशान निर्वाणरूपं विभुं व्यापकं ब्रह्मवेदस्वरूपम्।निजं निर्गुणं निर्विकल्पं निरीहं चिदाकाशमाकाशवासं भजेऽहम्॥
अर्थ: हे ईशान! आपको नमस्कार करता हूँ, जो निर्वाण के स्वरूप, सर्वव्यापी, ब्रह्म के रूप में व्याप्त हैं। आप स्वयं निर्गुण, निर्विकल्प, निरीह हैं, चिदाकाश के समान आकाश में वास करते हैं॥
7. भोलेनाथ महादेव के द्वारा कही गई एक प्रसिद्ध संस्कृत श्लोक है-
ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्।उर्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय मामृतात्॥
अर्थ: हे त्र्यम्बकम् (तीन आँख वाले) देव, हम आपको यज्ञ करते हैं। आप महासुगन्धित और पुष्टि दाता हैं। हमें ऐसे ही बन्धनों से मुक्त करें, जैसे फलों को पेड़ से बांधे हुए गिरते हैं। हमें मृत्यु से अमृत में मुक्ति दें॥
8. सर्वमङ्गलमाङ्गल्ये शिवे सर्वार्थसाधिके।शरण्ये त्र्यम्बके गौरि नारायणि नमोऽस्तु ते॥
अर्थ: हे शिवे! आप ही सर्वांग में मङ्गल स्वरूप हैं, सर्व अर्थों की प्राप्ति करने वाली हैं। हे त्र्यम्बके! हे गौरी! हे नारायणि! आपकी शरण में हम हैं। हम आपको नमस्कार करते हैं॥
जीवन के बारे में संस्कृत श्लोकों का हिंदी अर्थ सहित ,  प्राचीन भारत में बोली जाने वाली भाषा, कई Sanskrit Shlok  से भरी हुई है, जिसे पढ़कर आप अपने चरित्र को और भी मजबूत बना सकते हैं, और अपने जीवन को बेहतर बना सकते हैं



About the Author

Hey! My name is Raghavendra Tiwari, a professional educator, website designer, and content creator from Anuppur (M.P.). I love to teach, create interesting things, and share knowledge. Contact me for live classes, notes and to create a website.

Post a Comment

Cookie Consent
We serve cookies on this site to analyze traffic, remember your preferences, and optimize your experience.
Oops!
It seems there is something wrong with your internet connection. Please connect to the internet and start browsing again.
AdBlock Detected!
We have detected that you are using adblocking plugin in your browser.
The revenue we earn by the advertisements is used to manage this website, we request you to whitelist our website in your adblocking plugin.
Site is Blocked
Sorry! This site is not available in your country.