समावेशी शिक्षा का अर्थ
समावेशी शिक्षा शिक्षण प्रक्रिया के अंतर्गत अनेक वैयक्तिक भिन्नता वाले बच्चों को शामिल किया जाता है, इसके अंतर्गत शारीरिक मानसिक, शैक्षिक, सामाजिक आदि प्रकार के वैयक्तिक भिन्नता वाले बालकों को शामिल किया जाता है।
समावेशी शिक्षा क्षमता युक्त बच्चों को शामिल करता है जो देखने सुनने में कठिनाई महसूस करते हैं जो सही से चल फिर नहीं सकते और जो सीखने में अन्य बच्चों की तुलना में कमजोर होते हैं।
मनोविज्ञान के आधार पर समावेशी शिक्षा को व्यक्तिक भिन्नताओं के आधार पर बालकों का विभाजन मुख्यतः दो प्रकार से किया गया है-
- सामान्य बालक
- विशिष्ट बालक
समावेशी शिक्षा क्या है ?
इन सभी बालकों के लिए एक ही स्थान पर एक साथ जब शिक्षा की व्यवस्था की जाती है, तो इसे समावेशी शिक्षा कहा जाता है। समावेशी शिक्षा के अंतर्गत बालक को ध्यान में रखते हुए सभी को सामान्य रूप से शिक्षा का अवसर प्रदान किया जाता है, इसके अंतर्गत कोई भी बालक किसी शिक्षक के लिए व्यक्तिगत महत्व नहीं रखता है अर्थात सबको समान रूप से शिक्षा प्रदान किया जाता है।
समावेशी शिक्षा के अंतर्गत बालकों का वर्गीकरण-
- विशिष्ट बालक- ऐसे बालक जो शारीरिक मानसिक एवं संवेगात्मक रूप से सामान्य वालों को से भिन्न होते हैं उन्हें विशिष्ट बालक कहा जाता है। विशिष्ट बालकों को निम्न दृष्टिकोण से पहचाना या वर्गीकृत किया जा सकता है।
- बौद्धिक दृष्टि से - प्रतिभाशाली बालक या मंदबुद्धि बालक
- शैक्षिक दृष्टि से - तीव्र बुद्धि बालक या पिछड़े बालक
- शारीरिक दृष्टि से - बहरे दृष्टि दोष युक्त बालक, दृष्टिहीन बालक, अस्थिदोष बालक
- समस्यात्मक बालक की दृष्टि से - संवेगात्मक, असंतुलित, सामाजिक कुसंयोजित
- प्रतिभाशाली बालक- प्रतिभाशाली बालक ऐसे बालकों को कहा जाता है जिन की बुद्धि लब्धि सामान बालकों की तुलना में अधिक होती है। ऐसे बालक जिनकी बुद्धि लब्धि 140 से अधिक पाई जाती है, प्रतिभाशाली बालक कहलाते हैं।
सामान्य बालकों की बुद्धि लब्धि सामान्यता है 130 से अधिक होती है।
प्रतिभाशाली बालकों की विशेषताएं-
- ऐसे बालक कठिन विषयों में अधिक रूचि रखते हैं।
- यह बालक किसी भी परिस्थिति में आसानी से समायोजन कर लेते हैं।
- ऐसे बालक खेलना अधिक पसंद करते हैं।
- इनके लिए सामान्य बालकों की तुलना में जटिल पाठ्यक्रम तैयार करना चाहिए
- इनके लिए अलग से शिक्षण की व्यवस्था भी करनी चाहिए।
- मंदबुद्धि बालक- मंदबुद्धि बालक ऐसे बालकों को कहा जाता है जिन की बुद्धि लब्धि सामान बालकों की तुलना में निम्न होता है। मंदबुद्धि बालकों की बुद्धि लब्धि प्राय: 85 से ही कम होती है।
मंदबुद्धि बालकों की विशेषताएं-
- इन बालकों को पढ़ाते समय मंद गति से पढ़ाना चाहिए।
- इन्हें अन्य बालकों की तुलना में अतिरिक्त समय देना चाहिए।
- इनको समय-समय सीखने के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए।
- ऐसे बालक कठिन विषयों में रुचि नहीं लेते हैं जैसे- गणित विज्ञान व्याकरण आदि।
- ऐसे बालक मानसिक कार्य की अपेक्षा शारीरिक कार्य करना अधिक पसंद करते हैं।
- इन बालकों की सीखने की गति मंद होती है।
- पिछले बालक- ऐसे बालक जो कक्षा के आवश्यक कार्य को नहीं कर पाते हैं तथा कक्षा के अवसर बच्चों से पीछे रह जाते हैं, पिछड़े बालक कहलाते हैं। शिक्षण प्रक्रिया में किसी भी शिक्षक की यह मुख्यतः जिम्मेदारी होती है, कि कक्षा में शैक्षिक दृष्टिकोण से पीछे हो चुके इन बालकों की पहचान करें और उनकी समस्या का निदान करें और सीखने के लिए उन्हें प्रेरित करें। यदि पिछड़े बालक आर्थिक दृष्टिकोण से किसी वजह से पीछे हैं तो उनके लिए छात्रवृत्ति का प्रबंध करें।
- दृष्टिदोष से ग्रसित बच्चे - जब बच्चे किसी वस्तु पुस्तक या श्यामपट्ट पर लिखे गए शब्दों को देखने में कठिनाई का अनुभव करते हैं, तो ऐसे बच्चे दृष्टि दोष के अंतर्गत आते हैं।
दृष्टिदोष से ग्रसित बालकों की पहचान - निम्न बिंदुओं के आधार पर दृष्टि दोष से ग्रसित बालकों की पहचान की जा सकती है।
- ऐसे बच्चे पुस्तक को काफी नजदीक से पढ़ते हैं।
- ऐसे बच्चे बार-बार आंखों को मिलते हैं और भौहें सिकोड़ते हैं।
- श्यामपट्ट पर लिखे गए शब्दों को बार बार पूछते हैं।
दृष्टि दोष से ग्रसित बालको हेतु निदान-
- ऐसे बालकों को कक्षा में सबसे अगली पंक्ति में बैठाया जाए।
- ऐसे बालकों के लिए उनके माता-पिता को सुझाव देकर एक अच्छे नेत्र विशेषज्ञ से दिखाने का सुझाव देना चाहिए
- यदि चश्मा लगाने से समस्या दूर हो तो तत्काल चश्मा लगवा देना चाहिए।
श्रवणदोष से ग्रसित बच्चे- यदि कोई बच्चा वातावरण की आवाज सामान्य बच्चे की अपेक्षा कम सुन पाता है श्रवण दोष से ग्रसित होता है। सामान्य मनुष्य में सुनने की क्षमता 0 - 25 डेसीबल होती है।
पहचान-
- श्रवण दोष से ग्रसित बच्चे बोलने वालों की तरफ कान करके सम्मुख होकर सुनते हैं।
- यह बालक कान के पास बोलने पर सुनते हैं।
अस्थिदोष से ग्रसित बच्चे - अस्थि से संबंधित क्षमताओं के अंतर्गत बच्चों का हाथ पैर क्षतिग्रस्त होना या उंगलियों का ना होना, मांस पेशियों की तालमेल में समस्या आदि हो सकता है। जिससे क्रियाकलाप में कठिनाई आती है।
समावेशी शिक्षा के सिद्धांत-
समावेशी शिक्षा को मुख्य रूप से कुछ सिद्धांतों पर आधारित किया गया है जो कि इस प्रकार हैं।
- व्यक्तिगत रूप से भिन्नता
- माता-पिता द्वारा सहयोग प्रदान करना
- समायोजित वातावरण
- विशिष्ट कार्यक्रमों द्वारा शिक्षा
- भेदभाव रहित शिक्षा
- व्यक्तिगत रूप से भिन्नता- विद्यालय में विशिष्ट बालकों को उनके व्यक्तित्व के आधार पर शिक्षित किया जाता है प्रतिभावान छात्रों को विस्तार पूर्वक तथा मंदबुद्धि बालकों को धीरे-धीरे करके सिखाया जाता है लेकिन कुछ बालक ऐसे होते हैं जो बिल्कुल रुचि पूर्ण तरीकों से पढ़ाई नहीं करते हैं, उन बच्चों को समावेशी शिक्षा के इस सिद्धांत के आधार पर प्रेरित करके शिक्षा प्रदान किया जा सकता है।
- माता-पिता द्वारा सहयोग प्रदान करना - समावेशी शिक्षा के सिद्धांत के अनुसार बालकों को माता-पिता का सहयोग अत्यंत आवश्यक होता है यदि माता-पिता बच्चों के साथ सहयोग की भावना व्यक्त करते हैं तो छात्रों को उचित प्रकार से समावेशी शिक्षा प्रदान किया जा सकता है।
- समायोजित वातावरण- शारीरिक रूप से बाधित बालकों को शैक्षिक संस्थाओं द्वारा निशुल्क शिक्षा प्रदान कराया जाना चाहिए, लेकिन सामान्य रूप से किसी भी संस्था में किसी बालक को स्वीकार अथवा अस्वीकार करने का विकल्प विद्यालय की व्यवस्था में उपलब्ध नहीं होता है।
- विशिष्ट कार्यक्रमों द्वारा शिक्षा- समावेशी शिक्षा के अंतर्गत विशिष्ट कार्यक्रम को बालक की शिक्षा में प्रमुख स्थान दिया गया है, शारीरिक रूप से बाधित छात्रों की शिक्षा हेतु उनके माता-पिता को विद्यालय का पूर्ण सर्वे करने का अधिकार प्रदान होता है, यदि माता-पिता शिक्षण संस्थान से संतुष्ट नहीं होते हैं। वह बालकों को शिक्षण संस्थाओं से निकालकर अन्य किसी शिक्षण संस्थान में भेज देते हैं, क्योंकि बालकों को विशिष्ट कार्यक्रमों के द्वारा ही मुख्य रूप से शिक्षा प्रदान किया जा सकता है।
- भेदभाव रहित शिक्षा- विद्यालय में बालकों की पहचान अत्यंत आवश्यक होती है क्योंकि इसी के आधार पर छात्रों को वर्गीकृत किया जा सकता है और उन्हें उचित शिक्षा प्रदान किया जा सकता है।
इन्हे भी पढ़ें-