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Balvikas aur abhivriddhi

बाल विकास तथा अभिवृद्धि (Child development and growth) के अंतर्गत  बालक के शारीरिक मानसिक और अन्य पक्षों को लेकर अध्ययन किया जाता है।  जिसके अंतर्गत बालक के संपूर्ण जीवन  प्रतिमान केंद्रित होता है और उन्हें सिद्धांतों के अनुसार बालक का विकास होता है। 




कुछ मनोवैज्ञानिकों ने अभिवृद्धि और विकास को एक ही समझा था लेकिन समय के साथ-साथ अनेक मनोवैज्ञानिकों ने अपना मत प्रस्तुत किया और इन दोनों में भिन्नता पाई गई आगे हम समझेंगे कि बाल विकास तथा अभिवृद्धि (Child development and growth) किस तरह से भिन्न है?

मनोविज्ञान की वह शाखा जिसके अंतर्गत बालक के जन्म से लेकर परिपक्व अवस्था तक के विकास के संपूर्ण बच्चों को ध्यान में रखते हुए अध्ययन किया जाता है जिसे बाल विकास कहा जाता है। 

Child development and growth - Meaning and Difference


अभिवृद्धि का अर्थ (Meaning Of growth)

अभिवृद्धि का अर्थ- कुछ कुछ मनोवैज्ञानिकों का अर्थ है  है कि अभिवृद्धि एवं विकास  एक ही है, परन्तु ये दो विभिन्न क्रियाएँ है। अभिवृद्धि का अभिप्राय शरीर और उसके विभिन्न अंगों के वजन तथा आकार में होने वाले परिवर्तन यह बदलाव से लगाया जाता है।  

अर्थात अभिवृद्धि एक शारीरिक विकास है जिसके अंतर्गत किसी व्यक्ति के शारीरिक लंबाई आकार वजन में होने वाले परिवर्तन को ही वर्धन या वृद्ध ही कहा जाता है। विकास और अभिवृद्धि का अंतर्संबंध होता है। 

सोरेन्सन ने अभिवृद्धि का अर्थ इस कथन के अनुसार प्रस्तुत किया है- “सामान्य रूप से अभिवृद्धि शब्द का प्रयोग शरीर और उसके अंगों के वजन और आकार में वृद्धि के लिए किया जाता है। इस वृद्धि का मापन किया जा सकता है।” 

बाल विकास का अर्थ (Meaning of Child development)

प्रारंभ में बालक के विकास के विकास काअध्ययन बाल्यावस्था तक किया जाता था लेकिन बच्चे का शारीरिक तथा मानसिक विकास किशोरावस्था तक होता है बाद में कुछ मनोवैज्ञानिकों ने अपने सिद्धांत प्रतिपादित किए और सफल प्रयासों के बाद इसे बालक के जन्म से लेकर 18 वर्ष तक कर दिया गया।  इसका नाम बाल विकास रखा गया। 

बाल विकास और बाल अभिवृद्धि में अंतर - Difference between Child development and growth


बाल विकास बालक के पूर्वजों के पितृ-सूत्रों की रचना, वंशानुक्रम गर्भावस्था के बाद पड़ने वाले प्रभावों व कारकों आदि से प्रभावित होता है। विकास के जैविक स्वरूप की व्याख्या जीवन प्रतिमान के संदर्भ में सभी अवस्थाओं में की जाती है, क्योंकि विकास सभी पक्षों को लेकर चलता है।

किसी बालक क शारीरिक की लंबाई और वजन में होने वाले परिवर्तन को  प्रत्यक्ष रूप से मापन करना संभव होता है लेकिन विकास को  प्रत्यक्ष रूप से मापन किया नहीं जा सकता क्योंकि विकास गुणात्मक होता है। 

बालक की अभिवृद्धि सम्बन्ध शारीरिक और मानसिक वृद्धि और वातावरण से सम्बन्धित है। अभिवृद्धि और विकास एक दूसरे के पूरक है और दोनों ही बाल विकास के अध्ययन में अहम भूमिका है।

इस सम्बन्ध में उल्लेखनीय है कि अभिवृद्धि का प्रतिमान समान नहीं होता। अभिवृद्धि में विकास का प्रतिमान समान नहीं होता।अभिवृद्धि में व्यक्तिगत भेद पाये जो है। प्रत्येक बालक की अभिवृद्धि भिन्न होती है, जबकि विकास पदों में समानता पाई जाती है।

अभिवृद्धि पर वातावरण कारकों का प्रभाव पड़ता है। व्यक्ति अपने वातावरण के प्रति प्रतिक्रिया व्यक्त करता है और परिपक्वता के विकास का सीधा सम्बन्ध अभिवृद्धि से है।

बाल विकास के प्रमुख सिद्धांत (Principle of Child development)


किसी भी बालक का विकास कुछ प्रमुख सिद्धांतों के अनुसार ही होता है उनमें से तीन प्रमुख विकास के सिद्धांत इस प्रकार हैं-

  1. विकास एक निश्चित प्रतिरूप में होता है - प्रत्येक जातिया नस्ल न चाहे वह मनुष्य हो या पशु उसका विकास एक निश्चित प्रतिरूप में होता है। अर्थात हर सजीव का विकास एक निश्चित प्रतिमान के अनुसार होता है ,जैसे मनुष्य जाति में पहले बालक के आगे के दाँत निकलते  बाद में पिछले। इसी तरह पहले वह खड़ा होना सीखता है तथा बाद में चलना।

  2. विकास सामान्य से विशेष कीओर होता है- इसमें प्रक्रियाये पहले सामानय फिर विशेष होती है। बालक पहले शरीर को चलाता है, फिर चाहे घुमाता है और उसके बाद वस्तुओं को पकड़ने का प्रयास करता है।

  3. विकास की गति सतत् चलती है-विकास की प्रक्रिया सतत का अबाध्य गति से चलती है। शारीरिक व मानसिक शील गुणों का विकास श्रृंखला की एक कड़ी के रूप में होता रहता है।

 बालक के शारीरिक विकास की विशेषता - जन्म से बालक एक विशेष शरीर लेकर पैदा होता है तथा उसमें विकास की सभी क्षमतायें को निहित होती है।

बालक के बाहा एवं आंतरिक अवयवों के विकास का प्रमुख बिन्दु निम्न है-

बाह्य अवयवों का विकास- 

  1. कंकालीय विकास

  2. शरीर की आकृति और अनुपात के रूप में विकास 

  3. कद और वजन 

  4. दाँतों का विकास


आंतरिक अवयवों का विकास-

  1. स्नायुमण्डल का विकास

  2. मस्तिष्क का विकास 

  3. मांसपेशियों का विकास 

  4. श्वास संस्थान का विकास 

  5. हृदय एवं रक्त संचालन 

  6. रक्तचाप एवं नाड़ी की गति

  7. पाचन क्रिया 

  8. विभिन्न ग्रंथियाँ

बाल विकास के मूलभूत सिद्धांत (Fandamental principle of Child development)


बाल विकास के कुछ मूलभूत सिद्धांत है। बालक का शारीरिक तथा मानसिक विकास इन्ही निश्चित मूलभूत सिद्धांतों पर आधारित रहता है। 

  1. विकास क्रम का सिद्धांत- इस सिद्धांत के प्रतिपादकों का कथन है कि बालक का व्याकरण और भाषा सम्बन्धी विकास एक निश्चित जाती है। जन्म के समय क्रम में होता है। बालक जन्म के समय केवल रो सकता है, परन्तु वह धीरे-धीरे अन्य शब्द बोलना सीख जाता है।

  2. निरन्तर विकास का सिद्धांत- इस सिद्धांत के अनुसार विकास आती है। बालिकाओं की क्रिया निरन्तर बिना रूके चलती रहती है। विकास की गति कभी जल्दी होता है। स्पष्ट है धीमी हो जाती है और कभी तेज परन्तु यह लगातार चलती रहती है। इस सिद्धांत के अनुसार बालक में कोई आकस्मिक परिवर्तन नहीं |

  3. विकास दिशा का सिद्धांत- इस सिद्धांत के समर्थकों का कथन है कि बालक का विकास सिर से पैर की दिशा में होता है। बालक जन्म के समय केवल सिर उठा पाता है परन्तु वहीं बालक एक वर्ष के पश्चात्खड़ा होने लगता है और 1.5 वर्ष का होने पर चलने लगता है।

  4. विकास की विभिन्न गति का सिद्धांत- बालक के विकास में भिन्नता पाई जाती है वह एक समय में विकास के बहुत सारे बच्चों को लेकर चलता है और उन सभी चीजों के विकास की गति में भिन्नता पाई जाती है अर्थात बालक के विकास की गति एक समान नहीं होती है

  5. परस्पर सम्बन्ध का सिद्धांत-यह सिद्धांत बताता है कि बालक के शारीरिक, मानसिक, सामाजिाक तथा संवेगात्मक विकास में सम्बन्ध विकास शीघ्रता से होता होता है। जब बालक का शारीरिक विकास होता है तो उसके व्यवहार की गति मंद हो जाती है तथा रूचियों में भी परिवर्तन आने लगता है। शारीरिक विकास के साथ ही बालक का भाषा सम्बन्धी विकास भी होता है।

  6. एकीकरण का सिद्धांत- इस सिद्धांत के अंतर्गत बालक अन्य अंगों को पहले चलाना नहीं सीखता बल्कि सबसे पहले व संपूर्ण शरीर को चलाना सीखता है बाद में वह अन्य अंगों पर क्रिया करके उनका उपयोग व उनका संचालन करना सीखता है

  7. समान प्रतिमान का सिद्धांत- इस सिद्धांत के अनुसार प्रत्येक दृष्टिकोण का भी प्रभाव जाति या उपजाति का विकास एक समान होता है।

  8. वंशानुक्रम व वातावरण का अन्तःक्रिया का सिद्धांत- इस सिद्धांत के अनुसार बालक के विकास पर उसके वंशक्रम तथा वातावरण से होता है। दोनों की अन्तक्रिया का प्रभाव पड़ता है। वुडवर्थ ने लिखा है, वंशानुक्रम तथा वातावरण का सम्बन्ध जोड़ (+) के समान न होकर गुणा (x) के समान अधिक है। 

  9. वैयक्तिक भिन्नताओं का सिद्धांत- बालक तथा बालिकाओं के ग्रीवा ग्रथि (Thymus) विकास में भिन्नता होती है। एक ही आयु के दो बालकों या बालिकाओं | होने पर बालक का सा- का विकास एक समान नहीं होता है।

  10. सामान्य तथा विशिष्ट प्रतिक्रियाओं का सिद्धांत-इस सिद्धांत के अनुसार, बालक का विकास सामान्य से विशिष्ट प्रतिक्रियाओं की ओर होता है।

         हरलॉक का कथन है-विकास की सभी अवस्थाओं में बालक की प्रतिक्रियाएँ विशिष्ट बनने से पूर्व सामान्य प्रकार की होती है।

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